🕉️ शिव की मौन शिक्षा – हिमालय की गोद से एक आध्यात्मिक कथा
बहुत समय पहले हिमालय की निस्तब्ध और निर्मल गोद में एक तपस्वी रहते थे — ऋषि आर्यन। उन्होंने संसार का त्याग कर ध्यान, आत्मज्ञान और मोक्ष की खोज शुरू की। वर्षों तक साधना करने के बाद भी उन्हें अंतःशांति नहीं मिली।
एक रात, निराश होकर उन्होंने आकाश की ओर देखा और पुकारा —
🔱 भगवान शिव का प्राकट्य
उस रात, जब चाँदनी ने पहाड़ों को चांदी सी रोशनी से ढँक दिया था, भगवान शिव प्रकट हुए। न कोई गर्जना, न अग्नि — बस एक गहरी मौन उपस्थिति। वे एक शांत तपस्वी के रूप में एक रुद्राक्ष वृक्ष के नीचे बैठे थे।
आश्चर्य और श्रद्धा से भरे ऋषि आर्यन ने हाथ जोड़कर कहा —
🌊 मौन का उत्तर
शिव ने कुछ नहीं कहा। उन्होंने बहती हुई नदी की ओर इशारा किया — वह चुपचाप, शांति से बह रही थी। फिर उन्होंने आकाश की ओर देखा — जो विशाल था, और सब कुछ समेटे हुए था।
ऋषि बोले, “मैं समझ नहीं पाया प्रभु। कृपया स्पष्ट मार्गदर्शन करें।”
🕉️ शिव बोले:
आकाश सब कुछ समेटता है, पर किसी से बंधता नहीं।
मोक्ष संघर्ष से नहीं, त्याग और मौन से मिलता है।”
“जैसे मैं मौन हूं, तुम भी मौन हो जाओ। जब तुम स्वयं को छोड़ दोगे — तुम स्वयं शिव बन जाओगे।”
🙏 आत्मा का मिलन
उनके ये शब्द सुनते ही आर्यन का मन शांत हो गया। उन्होंने आंखें बंद कीं, विचार छोड़े और भीतर उतर गए। उसी क्षण वे अपने भीतर ही शिव का अनुभव करने लगे।
उस दिन से वे शिव को खोजते नहीं थे, क्योंकि अब वे स्वयं शिव स्वरूप हो चुके थे।
📖 इस कथा से क्या सीखें?
- मोक्ष संघर्ष से नहीं, समर्पण और मौन से प्राप्त होता है।
- शिव शब्दों से नहीं, मौन और प्रकृति से शिक्षा देते हैं।
- अपने विचारों और अहं को छोड़ना ही आत्मज्ञान की ओर पहला कदम है।
🕉️ हर हर महादेव 🕉️